डॉ. नीतू कुमारी नवगीत
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में सफल शासन प्रणाली की स्थापना के लिए संविधान निर्माताओं ने लोकतंत्र की राह पकड़ी । ब्रिटिश महारानी के प्रतिनिधि के रूप में शासनाध्यक्ष के रूप में काम करने वाले गवर्नर जनरल की जगह संसदीय प्रणाली अपनाई गई जिसमें राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा को संसद का अंग बनाया गया । राज्यों की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए विधान सभा विधान परिषद् और राज्यपाल का प्रावधान किया गया । लोकसभा और विधानसभा के सदस्यों का चुनाव आम मतदाताओं द्वारा किया जाता है जिसके लिए हर 5 साल पर निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कराया जाता है । बिहार विधानसभा के कार्यकाल की की अवधि के लगभग समापन से पहले निर्वाचन आयोग ने 3 चरणों में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी है । निर्वाचन आयोग की घोषणा के अनुसार 28 अक्टूबर को 16 जिलों की 71 सीटों पर, 3 नवंबर को 17 जिलों की 94 सीटों पर और 7 नवंबर को 15 जिलों की 78 सीटों पर चुनाव कराया जाएगा । निर्वाचन आयोग की इस पहल के साथ ही मतदाताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है । मतदाताओं को एक बार फिर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए बिहार के भविष्य का निर्धारण करने वाले नीति-नियंताओं को चुनने का अवसर मिल गया है । 5 साल पर चुनाव की यह व्यवस्था ही लोकतंत्र की असली ताकत है जो यहां के शासकों को नियंत्रणहीन, गैर जिम्मेदार और निरंकुश नहीं होने देती है ।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चुनाव वाले वर्ष की पहली जनवरी को 18 साल की उम्र वाले सभी भारतीय नागरिक मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं । मतदाताओं की सूची निर्वाचक नियमावली में शामिल की जाती है । 18 साल या उससे अधिक की आयु के सभी नागरिक को अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज कराना होता है ।
भारत में पहले 21 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिकों को ही मतदान का अधिकार प्राप्त था । लेकिन 1988 में संविधान के 61वें संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 326 में संशोधन करते हुए मतदाताओं की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया । राष्ट्र निर्माण में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए ही मतदाताओं की न्यूनतम आयु में परिवर्तन किया गया था ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करा सकें । प्रायः देखा गया है कि युवा अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक रहते हैं और मतदान को लेकर उनके दिलों में उत्साह से ज्यादा रहता है ।
किसी भी लोकतंत्र के लिए आदर्श स्थिति यह है कि सभी मतदाता निर्वाचन की प्रक्रिया में भाग लें और अपने मताधिकार का प्रयोग करें । लेकिन अनेक कारणों से भारत में शत-प्रतिशत मतदान का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है । 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में मात्र 45.7% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था । बाद में देश में शिक्षा के स्तर में सुधार और लोकतंत्र के प्रति जागरूकता के कारण मतदान प्रतिशत में वृद्धि होती चली गई । 2019 के लोकसभा चुनाव में 67% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया । 2015 में बिहार विधानसभा के लिए हुए चुनाव में 56.8% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था । जाहिर है कि पिछले लोकसभा चुनाव में लगभग 33% और पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग 40% मतदाता मतदान केंद्रों से दूर रहे । कारण चाहे जो भी रहा हो, एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक बड़ी आबादी द्वारा खुद को मतदान से वंचित रखना लोकतंत्र के लिए अस्वास्थ्यकर है । ऐसे मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाना और मतदान के लिए प्रेरित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है ।
निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान के प्रति लोगों में जागृति लाने के लिए स्वीप कार्यक्रम चलाया जाता है जिसके तहत मतदाताओं को जागरूक करने का प्रयास किया जाता है । लेकिन यह कार्यक्रम अपने उद्देश्य की पूर्ति कर पाने में सफल नहीं रहा है । जिला एवं राज्य स्तर पर पूरा जागरूकता कार्यक्रम लालफीताशाही और लापरवाही की भेंट चढ़ जाता है । कारण चाहे जो भी हो, मतदान की दूसरी प्रक्रियाओं में व्यस्त अधिकारी जागरूकता के इस पहलू को गंभीरता से नहीं लेते हैं । निर्वाचन आयोग द्वारा भी यह काम जिला निर्वाचन अधिकारियों को सौंपा जाता है जिनकी प्राथमिकताएं जिला के प्रशासन की देखरेख के अलावा सफलतापूर्वक चुनाव कराना होता है । आवश्यकता इस बात की है कि मतदाता जागरूकता कार्यक्रम निर्वाचन आयोग की देखरेख में प्रोफेशनल एजेंसियों द्वारा चलाया जाए जिसमें विभिन्न विधा के कलाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका हो । लोकतंत्र लाठी की ताकत से नहीं चलती । फाइलों पर लिखे गए आदेशों से उन विमुख मतदाताओं को मतदान केंद्र तक नहीं लाया जा सकता जो लोकतंत्र में मतदान की कीमत को नहीं समझते । लेकिन विभिन्न कला माध्यमों से यदि कम पढ़े-लिखे और समाज के हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों को वोट की ताकत के बारे में बताया जाए तो उसका सकारात्मक नतीजा निकल सकता है ।
(लोक गायिका नीतू नवगीत निर्वाचन आयोग के मतदाता जागरूकता कार्यक्रम की ब्रांड अंबेसडर रह चुकी हैं)