डॉ. नीतू कुमारी नवगीत
श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन भारतवर्ष का एक बहुत ही प्राचीन पर्व है । इस दिन बहनें अपने भाई के सुख और समृद्धि तथा लंबी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करते हुए उसकी कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी बहन की रक्षा की जिम्मेदारी का वचन देता है । वस्तुतः रक्षाबंधन रेशम के कच्चे धागे से बंधे पक्के वचनों का त्योहार है ।
राखी बांधते समय उच्चारित किया जाने वाला मंत्र इस प्रकार है-
येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल:.
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल..
इसका अर्थ है कि
जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधती हूं । हे रक्षे (राखी), तुम अडिग रहना । अपने रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना ।
प्रेम और स्नेह के इसी धागे में बंध कर भाई जीवन भर बहन की रक्षा में लगा रहता है ।
प्राचीन काल में रक्षाबंधन का त्योहार गुरुकुल और आश्रमों में मनाया जाता था । श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उस मास के यज्ञ की पूर्णाहुति और तर्पण के दौरान सभी यज्ञोपवीत धारण करते थे और अंत में रक्षा सूत्र बांधा जाता था । पीले रंग के अभिमंत्रित रक्षा सूत्र धारण करके छात्र वेद और पुराण आदि का अध्ययन प्रारंभ करते थे ।
रक्षाबंधन का त्योहार सामाजिक और पारिवारिक एकता का सांस्कृतिक आधार भी है । विवाह के बाद बहनें पड़ाई घर में चली जाती हैं और भाई रक्षाबंधन के बहाने प्रतिवर्ष अपनी बहन से मिलने के लिए और उसका सुख-दुःख जानने के लिए चला आता है ।
रक्षाबंधन की पौराणिकता को लेकर कोई संदेह नहीं है । भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध हुआ था तो दानव भारी पड़ रहे थे । इससे देवताओं के राजा इंद्र घबरा गए और वह वृहस्पति देव के पास पहुंचे । वहीं पर इंद्र की पत्नी शुचि ने इंद्र को रेशम के धागे को अपनी शक्ति से अभिमंत्रित कर बांधा था । पुरुष शक्ति को जब नारी शक्ति का साथ मिला तो इंद्र के नेतृत्व में देवताओं की जीत हुई । ऐसी मान्यता है कि उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन पुरुषों की कलाई पर महिलाओं द्वारा रेशम के धागे को बांधने की परिपाटी प्रारंभ हुई । आज भी महिलाओं द्वारा देश की सुरक्षा में सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए राखियां भिजवाई जाती हैं ।
राखी के धागे को धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने वाला धागा भी माना गया है । यही कारण है कि घरों में अनुष्ठान तथा मंदिरों में पूजा-पाठ के समापन अवसर पर मौली के कच्चे धागे बांधे जाते हैं जो संकटों पर विजय का आशीर्वाद होता है । महाभारत काल में द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण को उस समय राखी बांधी थी जब सुदर्शन चक्र से उनका हाथ कट गया था । इसी बंधन में बंध जान के कारण भगवान श्री कृष्ण ने जुए में हार गई द्रौपदी के चीरहरण के समय एक सच्चे भाई का धर्म निभाते हुए उसके शील और प्रतिष्ठा की रक्षा की थी ।
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद् भागवत ग्रंथ में भगवान श्री विष्णु के वामनावतार की चर्चा है । दानवीर किंतु घमंडी राजा बलि के दर्प के मर्दन के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार में उनसे तीन डेग जमीन मांगा । राजा बलि ने उन्हें दान स्वरूप तीन डेग जमीन दे दिया । आकाश, धरती और उसका शरीर नाप लिया । लेकिन राजा बलि ने भी बड़ी ही चालाकी से भगवान विष्णु से दिन-रात उनके साथ ही रहने का वचन ले लिया । इससे माता लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं और अपने पति को वापस पाने के लिए नारद मुनि की सलाह पर राजा बलि को राखी बांधा और बदले में भगवान विष्णु को वापस पाया ।
राखी का यह महान त्योहार और भाई-बहन का प्यार लोकगीतों और फिल्मी गीतों में भी खूब देखने को मिलता है । इस पावन त्योहार के आगमन के कई दिन पहले से ही फिजाओं में राखी के गीत गूंजने लगते हैं । बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है, इसे समझो ना रेशम का तार भैया मेरी राखी का मतलब है प्यार भैया सहित कई गाने लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं । बहनें निःस्वार्थ भाव से राखी बांधती हैं और गीतों के माध्यम से साफ-साफ कहती हैं- मेरे भैया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन/ तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ ।
हमारे लोकजीवन में त्योहारों का बहुत महत्व रहा है । अलग-अलग त्यौहार के अलग-अलग लोकगीत सुनने को मिलते हैं । श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें गाती हैं-
रखिया बँधा ल भैया सावन आईल, जिया तू लाख बरिस हो/ तोहरा के लागे भैया हमरी उमरिया, बहिना तो देले आशीष हो । एक लोकगीत में बहनें कहती हैं- रेशम की डोरी से नेहिया बंधल बा, जनमों जनम से ई नाता जुड़ल बा । एक दूसरे लोकगीत में बहनें गुजारिश करती हैं- राखी हर साल कहेले सवनवाँ में/ भैया बहिनी के रखिया हरदम अपन मनवाँ में ।
इस वर्ष के रक्षाबंधन के अवसर पर मैंने भी एक नया गीत गाया है जिसके बोल कुछ इस प्रकार हैं - राखी के त्योहार ह भैया, रखिया तू हूं बंधा ल । जुग जुग जिया हो, मोरे भैया जिया हो । कई दूसरे कलाकार भी नए-नए गीतों के साथ भारतीय संस्कृति के इस प्रतिनिधि पर्व को पूर्ण उत्साह के साथ मनाने की अपील कर रहे हैं । कोरोना महामारी के समय फिजिकल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए हमें अपना यह लोक पर्व मनाना है ।
लेखिका बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका हैं