मधुबनी, झंझारपुर। परसा धाम में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर परिसर में आयोजित मार्तंड महोत्सव में बिहार के प्रसिद्ध लोक गायिका नीतू कुमारी नवगीत ने बिहार के पारंपरिक गीतों की प्रस्तुति करके उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया। उन्होंने वसन्त गीत हमरा आम अमराइया बड़ा निक़ लगेगा, साइयाँ तोहरी मड़ईया बड़ा निक़ लगेगा, झूमर पिपरा के पतवा फुनूँगिया डोले रे ननदी , वइसे डोले जियरा हमार छोटी ननदी और होली गीत कान्हा होलिया में रंग बरसइब कि ना, हमारा उंगली पकड़ के नचेव कि ना पेश करके उपस्थित श्रोताओं को बिहार की पारंपरिक लोक गायकी के विभिन्न रूपों से परिचित करवाया। भगवान मार्तंड की आराधना करते हुए नीतू कुमारी नवगीत ने छठ गीत केलवा के पात पर उगेलन सूरजदेव झाँके झूँके, हे करेलू छठ बरतिया से झाँके झूँके गाकर माहौल में भक्ति का रस घोला।। सांस्कृतिक कार्यक्रम में शरफुद्दीन, अरुणकुमार, स्नेहा कुमारी, श्रीपर्णा चक्रव्रती आदि ने गायिका नीतू कुमारी नवगीत के साथ शानदार प्रस्तुति दी।
महोत्सव से पहले पत्रकारों से बातचीत करते हुए नीतू कुमारी नवगीत ने कहा कि मनोरंजन के साधन जब सीमित थे तो लोक गीत लोक जीवन का अपरिहार्य अंग हुआ करते थे । शादी-विवाह हो या फिर फसलों की रोपनी और कटनी, महिलाएं गीत गा-गा कर ही अपना काम राजी-खुशी निपटातीं और सब के लिए मंगल की कामना करतीं । लोकगीत उल्लास जगाते, हर्षित करते और इन्हीं गीतों के माध्यम से महिलाएं अपना दर्द भी बयां करतीं । अब मनोरंजन के साधन सबकी हथेलियों पर हैं पर सबके लब खामोश हैं । गीतहारिनों की संख्या कम हो रही है । शादी-विवाह, मुंडन, जनेऊ, गोदभराई जैसे संस्कार बिना गीत के ही संपन्न किए जा रहे हैं । संगीत के नाम पर लोग सभी मौकों पर डीजे की धुन पर नाच रहे हैं, लेकिन उससे हमारी संस्कृति प्रभावित हो रही है । इसलिए जरूरी है कि पारिवारिक समारोहों में गीत गाए जाएं । खुद गाएं तो सबसे बेहतर, नहीं तो वैसे गायक गायिकाओं को अवसर दें जो हमारी संस्कृति से जुड़े हुए गीत प्रस्तुत करते हैं । लेकिन यहां हो उल्टा रहा है । नए-नए गीत रचे जा रहे हैं । अधिकांश गीतों में अश्लीलता है । अधिकांश गीतों में जीवन का वह उल्लास दिखने को नहीं मिलता जो हमारे पारंपरिक गीतों में है । लोकगीत के नाम पर प्रस्तुत किए जाने वाले इन गीतों को स्त्री विरोधी गीत ही माना जाना चाहिए । परिदृश्य ज्यादा बदलता दिख नहीं रहा । बिहार के कलाकार सरकारी सांस्कृतिक समारोहों से उम्मीद करते हैं कि उन्हें बिहार की विरासत और सांस्कृतिक पहचान से जुड़े कार्यक्रमों की प्रस्तुति का अवसर मिलेगा, लेकिन वहां भी ज्यादा अवसर सारेगामा और लिटिल चैंप्स जैसे कार्यक्रमों में भाग लेने वाले कलाकारों को दिया जा रहा है । इन सब से बिहार के कलाकार हतोत्साहित हो रहे हैं । सरकार और सरकारी तंत्र से जुड़े अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए । समाज और सरकार मिलकर प्रयास करें, तभी लोकगीतों की समृद्ध बिहारी परंपरा को बेहतर तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है।