नई दिल्ली। समस्त विश्व को सरल - सहज ध्यान की पद्धति ‘‘भावातीत ध्यान‘‘ से परिचित कराने वाले विलक्षण प्रतिभा के धनि महर्षि महेश योगी की 103 वीं जयंती अत्यंत हर्षोल्लास के साथ डॉ. अम्बेडकर इन्टरनेशनल सेन्टर में 12 जनवरी को मनायी गयी। छः दशकों के अपने अथक परिश्रम तथा अनेक देशों में भारतीय विशुद्ध ज्ञान की पताका लहराने वाले महर्षि महेश योगी जी के अद्वितीय प्रयासों की जितनी सराहना की जाय वह कम होगी। महर्षि जी ने सम्पूर्ण विश्व में चालीस हजार से अधिक भावातीत ध्यान के शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जिनके माध्यम से इस विद्या का प्रचार-प्रसार किया जाता है।
कार्यक्रम का शुभारंभ हवन व दीप प्रज्ज्वलन के साथ वैदिक मंत्रों के साथ शुरू हुआ। महर्षि जयन्ती के उपलक्ष्य में महर्षि सूचना एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा अंबेडकर इंटरनेशनल, दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करते हुए महर्षि के योगदान को रेखांकित किया और बताया कि महर्षि समय काल से परे थे। इसके बाद राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा ने जैविक खेती व देशी गोवंश के संवर्धन को लेकर उपस्थित जन सुमदाय का ज्ञानवर्धन किया। इनके अलावा प्रो. डॉ. राज सिंह, वाइस चांसलर, अंसल यूनिवर्सिटी गुरुग्राम, प्रो. डॉ. भुवनेश शर्मा-वाइस चांसलर, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय, जबलपुर, प्रो. डॉ. डब्ल्यू सेल्वामूर्ति, डी.जी., एमिटी, साइंस टेक्ननॉलाजी एण्ड इनोवेशन फाउण्डेशन नोएडा तथा डॉ. आलोक प्रकाश मित्तल, पूर्व, मेंबर सेक्रेट्री, ए.आई.सी.टी.ई. एवं प्रो. (रिटा0) देवेन्द्र मिश्रा, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्व विद्यालय ने अपने विचार प्रस्तुत किया।
उल्लेखनीय है कि 12 जनवरी 1917 में जन्मे महर्षि जी अपने गुरू स्वामी ब्रम्हानंद सरस्वती, शंकराचार्य, ज्योतिषपीठाधीश्वर से शिक्षा ग्रहण कर सम्पूर्ण विश्व में मानव कल्याण हेतु विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। 1960 के दशक में महर्षि जी ने आध्यात्मिक पुनुरूत्थान आंदोलन के माध्यम से विशुद्ध वैदिक ज्ञान का लाभ सर्वसाधारण को उपलब्ध कराने के लिए सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण प्रारम्भ किया तथा अनेक देशों में भावातीत ध्यान एवं योग के शिक्षकों को इस निमित्त प्रशिक्षित किया कि इस अनुपम ज्ञान का लाभ अधिक से अधिक व्यक्तियों को हो सके।
600 से अधिक वैज्ञानिक शोधों तथा अनेक विश्वविद्यालयों के शोध संस्थानों ने यह प्रमाणित किया है कि किस प्रकार व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व तथा उसके जीवन को इस अप्रतिम ज्ञान द्वारा उत्तरोत्तर लाभान्वित किया जा सकता है। ऐसे में महान वैज्ञानिक संत महर्षि जी के जयंती के शुभ अवसर पर उनके द्वारा प्रदर्शित किये गये ज्ञान पथ ‘‘भावातीत ध्यान एवं योग विद्या‘‘ का समसामयिक विवेचन वर्तमान विश्व परिपेक्ष्य में किया जाना नितान्त आवश्यक है।महर्षि जी ने अपने सम्भाषणों में सदैव ‘‘एक ही साधे सब सधै‘‘ के सिद्धान्त को विस्तार से बताया है अर्थात वर्तमान गहराते विश्व संकट का सहज रूप से समाधान इस सिद्धान्त को तत्परता से लागू किये जाने मात्र से ही संभव हो सकता है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि विश्व की अधिकाधिक संख्या स्व में स्थित होकर अपनी चेतना केा सहज रूप से निर्मल होने की प्रक्रिया में लिप्त हो जाये तो किसी भी प्रकार के टकराव की संभावना ही नष्ट हो जाती है तथा अधिकाधिक लोगों के ध्यान करने से एक नैसर्गिक एवं प्राकृतिक वातावरण निर्मित होता है। भारत में महर्षि जी ने शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। अनेक संस्थानों के माध्यम से अनेक वेद विज्ञान विद्यापीठों, 200 से अधिक महर्षि विद्यामंदिर स्कूलों, प्रबन्ध तथा प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय इत्यादि की स्थापना की गई है जिनके माध्यम से हजारों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।