उम्मीद अभी बाकी है दोस्त!


आर.के.सिन्हा


भारत विश्व इतिहास रचने से मात्र एक कदम दूर रह गया। अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के करीब उतरता। पर इसरो के वैज्ञानिकों की क्षमताओं पर किसी को संदेह नहीं है। भारत को जल्दी ही पुन:कामयाबी मिलेगी ही । इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी। लेकिन, दक्षिण ध्रुव पर किसी ने अबतक लैंडिंग करवाने की हिम्मत नहीं की थी ।


चंद्रयान -2 के लैंडर विक्रम को लेकर धीरे-धीरे जानकारियां मिल रही हैं । भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने बताया है कि हार्ड लैंडिंग के बाद विक्रम चांद की धरती पर गिरकर थोड़ा तिरछा हो गया है । हालांकि, वह टूटा नहीं है। वैज्ञानिक अब इस बात की सम्भावना खंगालने में जुटे हैं कि विक्रम से पुन: संपर्क कैसे स्थापित हो सकता है ।


उल्लेखनीय है कि जिस समय संपर्क टूटा था, लैंडर चांद से मात्र 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था । इसरो के वैज्ञानिकों का एक दल उससे संपर्क साधने के काम में लगा है । भले ही विक्रम का कोई हिस्सा टूटा नहीं है,लेकिन इससे पुन:संपर्क स्थापित कर पाना तो मुश्किल ही लगता है। अगर इसकी साफ्ट लैंडिंग हुई होती और इसके सभी पुर्जे सही सलामत काम कर रहे होते,तभी संपर्क हो सकता था । एक अधिकारी ने एक पुराने मामले को याद करते हुए कहा कि एक बार अंतरिक्षयान से संपर्क टूट गया था और बाद में संपर्क जुड़ गया था, लेकिन अधिकारी ने स्पष्ट किया कि लैंडर का मामला उससे अलग है । यह चाँद की सतह पर पड़ा है और वहां उसकी स्थिति  को बदलने का कोई विकल्प नहीं है ।


लैंडर पर लगे एंटीना या तो धरती पर स्थापित इसरो के स्टेशन की ओर हों या आर्बिटर की ओर तभी संपर्क  संभव है । यह स्थिति बहुत मुश्किल है । वैसे लैंडर में ऊर्जा की कोई समस्या नहीं हैं। इसके चारों तरफ सौर पैनल लगे हैं । इनके अलावा उसमें अन्दर भी कुछ बैटरियां हैं, जिनका अभियान के बीच में ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुआ है ।


प्रज्ञान को लेकर उम्मीदें लगभग ख़त्म हो गई हैं ऐसा इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पीके घोष का कहना है । वे कहते हैं कि अगर लैंडिंग के समय लैंडर विक्रम तिरछा हो गया है तो रोवर प्रज्ञान को लेकर उम्मीदें लगभग ख़त्म हो गई हैं । लैंडर के तिरछा होने के बाद रोवर का उससे बाहर आना असंभव सा होगा ।


चंद्रयान -2 के तीन हिस्से थे-आर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान । रोवर प्रज्ञान  लैंडर के अन्दर ही था । साफ्ट लैंडिंग के कुछ घंटे बाद इसे लैंडर से बाहर आकर प्रयोग करना था । इसरो नियंत्रण कक्ष में इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैज्ञानिकों का जिस तरह हौसला बढ़ाया वह काबिले-तारीफ है। उन्होंने जब कहा कि वे मिशन में आई रुकावटों के कारण अपना दिल छोटा नहीं करें, क्योंकि नई सुबह जरूर होगी, तो सभी वैज्ञानिकों के निराशा भरे चेहरे पर उम्मीदों की किरणें चमक आई। प्रधानमंत्री के हर शब्द ने वैज्ञानिकों के साथ-साथ पूरे देशवासियों का भी उत्साह बढ़ा दिया। उनके शब्द कि “हर मुश्किल, हर संघर्ष, हर कठिनाई, हमें कुछ नया सिखाकर जाती है, कुछ नए आविष्कार, नई टेक्नोलॉजी के लिए प्रेरित करती है और इसी से हमारी आगे की सफलता तय होती हैं। ज्ञान का अगर सबसे बड़ा शिक्षक कोई है तो वो विज्ञान है। विज्ञान में विफलता नहीं होती, केवल प्रयोग और प्रयास होते हैं। हमें सबक लेना है, सीखना है। हम निश्चित रूप से सफल होंगे। ऐसे प्रयोग हम सबका उत्साह बढ़ाते हैं और जीवन के हर कदम पर मुश्किलों से लड़ने की सीख देते हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने इसरो प्रमुख को जिस प्यार से गले लगाया और काफी देर तक उनकी पीठ को सहलाते रहे और ढाढस बंधाते रहे वह अद्भुत दृश्य था ।


वाकई यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन था। किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने वाले तीन तरह के लोग होते हैं। सबसे निचले स्तर पर वे होते हैं जो रुकावटों के डर से कभी काम की शुरुआत नहीं करते। मध्य स्तर पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो काम तो शुरू कर देते है पर रुकावट आते ही भाग जाते हैं। सबसे ऊंचे स्तर पर वे लोग पहुंचते हैं जो लगातार रुकावट के बावजूद निरंतर प्रयास करते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही दम लेते हैं। इसरो के वैज्ञानिक इसी स्तर के लोग हैं। एक शेर याद आ रहा है जो इसरो वैज्ञानिकों को समर्पित है : इस तरह तय की हैं हमने मंजिलें । गिर पड़े, गिरकर उठे, उठकर चले ।


चंद्रयान के सफर का आखिरी पड़ाव भले ही आशा के अनुरूप नहीं रही है। लेकिन उसकी यात्रा शानदार रही है। इसे 99%सफलता तो मानेंगे ही ।आज भी हमारा ऑर्बिटर सफलता पूर्वक चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है और लगातार चित्र और सूचनाएं भेज रहा है । चंद्रयान-2 को भी उसने चन्द्रमा की धरती पर ढूंढ निकाला है और अभी भी उसे जीवंत करने का प्रयास जारी है ।


भारत की इस हार में भी जीत ही है। ऑर्बिटर भारत ने पहले भी पहुंचाया था। चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर से चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर ज्यादा आधुनिक और अनेकों साइंटिफिक उपकरणों से लैस है। विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग भारत के लिए पहली बार था। चंद्रयान-2 को बिल्कुल नई जगह पर भेजा गया था ताकि नई चीजें,नई जानकारियां दुनिया के सामने आए। पुरानी जगह पर जाने का कोई फायदा भी नहीं था । इसीलिए नई जगह चुनी गई थी। ऑर्बिटर तो अपना काम कर ही रहा है। चांद पर पानी की खोज भारत का मुख्य लक्ष्य था और वो काम ऑर्बिटर कर रहा है। भविष्य में इसका डेटा जरूर सामने आएगा। लैंडर विक्रम मुख्य रूप से चांद की सतह पर जाकर वहां का विश्लेषण करने वाला था, वो तो शायद अब नहीं हो पाएगा। वहां की चट्टान का विश्लेषण करना था वह भी अब नहीं हो पाएगा। हालांकि विक्रम और प्रज्ञान के बीच संपर्क की उम्मीदें अब भी बाकी हैं। अगर दोबारा संपर्क स्थापित हो जाता है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।


हालांकि ऑर्बिटर अपनी कक्षा में सामान्य रूप से कार्यरत है और चंद्रयान-2 पर लगा लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर यहां सतह पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश के आधार पर यहां मौजूद मैग्नीशियम, एल्यूमिनियम, सिलिकॉन आदि का पता लगाएगा। यही नहीं यान पर लगा पेलोड टेरेन मैपिंग कैमरा हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरों की मदद से चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा। इससे चांद के अस्तित्व में आने से लेकर इसके विकासक्रम को समझने में मदद मिलेगी। इसके अलावा इमेजिंग आइआरएस स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से यहां की सतह पर पानी और अन्य खनिजों की उपस्थिति के आंकड़े जुटाने में मदद मिलेगी।


उम्मीद पर दुनिया कायम है। विक्रम लैंडर फिर से काम करेगा, इसी उम्मीद के साथ इसरो वैज्ञानिक अब भी काम रहे हैं। वैज्ञानिक विक्रम लैंडर के फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर के डेटा से यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर 2.1 किमी की ऊंचाई पर क्यों लैंडर अचानक अपने रास्ते से भटक गया। फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर वैसा ही यंत्र होता है जैसे जमीन पर उड़ने वाले विमान का ब्लैक बॉक्स। भविष्य में विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर कितना काम करेंगे इसका पता तो डेटा एनालिसिस के बाद ही चलेगा। इसरो वैज्ञानिक अभी यह पता कर रहे हैं कि चांद की सतह से 2.1 किमी ऊंचाई पर विक्रम अपने तय मार्ग से क्यों भटका। इसकी एक वजह तो यह भी हो सकती है कि विक्रम लैंडर के साइड में लगे छोटे-छोटे 4 स्टीयरिंग इंजनों में से किसी एक ने काम न किया हो। इसकी वजह से विक्रम लैंडर अपने तय मार्ग से दिग्भ्रमित  हो गया है और यहीं से सारी समस्या शुरू हुई हो । इसलिए वैज्ञानिक इसी प्वांइट की स्टडी कर रहे हैं। हालांकि इन निराशाओं के बीच इसरो के वैज्ञानिक फिर से अपने काम पर पूरी  लगन और तत्परता से  जुट गएहैं।


अंत में उपर्युक्त मिशन के पूरी तरह से सफल ना होने पर पाकिस्तान जिस तरह  से गदगद है, वह उसकी बीमार मानसिकता को ही दर्शाता है। वहां पर कई स्तरों पर भारत के महत्वाकांक्षी मिशन के सफल न होने पर सरकार और कुछ उन्मादी अवश्य खुश हुए ।