फिर औंधे मुंह गिरा पाकिस्तान

बद्री नाथ वर्मा


जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का 42 वां सत्र हालांकि वैश्विक मानवाधिकार स्थिति पर विचार के लिए आयोजित था। लेकिन हमारे पड़ोसी के पास एक ही एजेंडा है- हर वैश्विक मंच पर भारत को कठघरे में खड़ा करो। विश्व में हर जगह उसे मुंह की खानी पड़ रही है पर वह मानने को तैयार नहीं। सुरक्षा परिषद में मात खाने के बाद उसका अगला निशाना मानवाधिकार परिषद था और उसके बाद संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा अधिवेशन है। हालांकि मानवाधिकार परिषद में उसकी जैसी पिटाई हुई उसके बाद उसे महसूस हो गया है कि चीन को छोड़कर कोई उसके साथ नहीं और चीन भी उसके लिए भारत से पूरी तरह संबंध बिगाड़ लेने की सीमा तक नही जाएगा।


पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 42वें सत्र की शुरुआत में मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशालेट के उद्घाटन भाषण से भी थोड़ी उम्मीद बंध गई थी। मिशेल बाशालेट ने कहा कि कश्मीर पर भारत सरकार के हालिया कदमों को लेकर और कश्मीरी लोगों के मानवाधिकार को लेकर मैं बहुत अधिक चिंतित हूं। सरकार की ओर से जो कदम उठाए गए उनमें इंटरनेट पर प्रतिबंध, शांतिपूर्ण तरीके से लोगों के जमा होने और स्थानीय नेताओं को नजरबंद किया जाना शामिल है। बाशालेट ने असम में एनआरसी के मुद्दे का भी जिक्र कर दिया और कहा कि इसके कारण क्षेत्र में बहुत अधिक तनाव और अस्थिरता उत्पन्न हो गई है। उन्होंने कश्मीर पर कहा कि उनके कार्यालय को नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ की मानवाधिकार स्थिति को लेकर रिपोर्ट मिल रही है। मिशेल को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगत बाल्तिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन, बलूचिस्तान में सेना द्वारा की जा रही हिंसा और दमन, मुहाजिरों एवं पख्तूनों को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की वजह से हर तरह के उत्पीड़न से गुजारना आदि नहीं दिखा।


ऐसे में भारत के सामने यह आवश्यक हो गया था कि वह बाशालेट को भी सभ्य भाषा में आइना दिखाए और पाकिस्तान को तो खैर नंगा करना ही था। विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह और पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल वहां पूरी तैयारी से उपस्थित था। इन्होंने तमाम समूहों और देशों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर अपना पक्ष रखा। ज्यादातर का जवाब भारत के पक्ष में सकारात्मक था। इन लोगों ने मिशेल बाशालेट से भी मुलाकात कर उन्हें अनुच्छेउ 370 के खात्मे के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात तथा एनआरसी की जानकारी दी थी। भारत को पता चल गया था बाशालेट जम्मू कश्मीर और असम का मामला उठाने वाली हैं। इसलिए पूरी तैयारी की गई थी। भारत की तैयारी दोहरी थी। अपना पक्ष प्रभावी तरीके से विन्दूवार रखना, पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश करना तथा गिलगित बाल्तिस्तान, बलूचिस्तान,पख्तूनिस्तान एवं सिंध के प्रतिनिधियों को बोलने का मौका दिलाना, बाहर मीडिया से इनकी बातचीत की व्यवस्था करना तथा इन समूहों के प्रदर्शन को समर्थन देना। भारत ने सफलतापूर्वक यह किया है।


बहरहाल, पाकिस्तान ने वहां भारत के खिलाफ जहर उगलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पाकिस्तानी विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा कि कश्मीर में कब्रिस्तान जैसी खामोशी छाई हुई है। वहां नरसंहार किया जा रहा है। पिछले छह सप्ताह में भारत ने जम्मू-कश्मीर को दुनिया का सबसे बड़ा कैदखाना बना दिया है। 6 हजार से ज्यादा नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र गिरफ्तार किए गए हैं। कुरैशी ने मांग की कि मानवाधिकार संगठनों और अंतररराष्ट्रीय मीडिया को कश्मीर जाने दिया जाय। और सबसे अंत में नाभिकीय युद्ध के अपने अस्त्र का प्रयोग करते हुए कहा कि दक्षिण एशिया में नाभिकीय युद्ध की आशंकाओं को टालना होगा।


पहले तो भारत ने सामान्य तरीके से अपनी बात रखी जिसमें कश्मीर की बात का अंतर्निहित खंडन था क्योंकि इसमें केवल झूठ था। विदेश मंत्रालय के प्रथम सचिव विमर्श आर्यन ने अपने जवाब में कहा कि इस मंच को झूठी दलीलों के साथ राजनीतिक रंग देने और ध्रुवीकरण की कोशिश में दिए गए बौखलाहट भरे बयान पर हमें कोई आश्चर्य नहीं है। पाकिस्तान समझ गया है कि हमारे फैसले ने सीमापार से आतंकवाद को लगातार पोषित करने की राह में बाधा पैदा करते हुए उसके पैरों तले से जमीन खींच ली है। कुछ पाकिस्तानी नेता जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़काने के लिए जेहाद की अपील भी करने लगे हैं। वो दूसरे देशों के सामने नरसंहार की तस्वीर पेश करने में लगे हैं, जबकि उन्हें भी पता है कि यह सच से कोसों दूर है।' निशाना इमरान खाने थे लेकिन आर्यन ने उनका नाम नहीं लिया। आर्यन ने कहा कि पाकिस्तान यहां मानवाधिकारों का वैश्विक पैरोकार बनने की कोशिश में है लेकिन दुनिया मूर्ख नहीं बन सकती है। पाक की वाहियात कोशिशों से उसके यहां अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति से दुनिया का ध्यान नहीं हट सकता। विमर्श आर्यन ने दो टूक शब्दों में कहा कि अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक अस्थायी प्रावधान था, इसमें बदलाव करना पूरी तरह भारत का आतंरिक मामला और अधिकार है। लोकतंत्र के मूल्यों को संरक्षित करने के लिए कश्मीर के लोग एकजुट हैं और पाकिस्तान को कश्मीर पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है। पाकिस्तान ने मानवाधिकार पर वैश्विक समुदाय की आवाज के रूप में बोलने का नाटक किया है, लेकिन वह दुनिया को और बेवकूफ नहीं बना सकता। उसकी यह बयानबाजी पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय ईसाई, सिख, शिया, अहमदिया और हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न से अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान नहीं भटका सकेगी।


इससे पहले विदेश मंत्रलय के पूर्वी मामलों की सचिव विजय सिंह ठाकुर ने अपने 2 मिनट 44 सेकेंड के वक्तव्य में एक बार भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन पूरी धज्जियां उड़ा दी। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों के बहाने दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडे के लिए वैश्विक मंचों का दुरुपयोग करने वालों की निंदा होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर उन्होंने कहा, 'हम दोहराना चाहते हैं कि संसद द्वारा पारित अन्य कानूनों की तरह यह एक संप्रभु निर्णय है, जो पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। कोई भी देश अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता है। भारत तो बिल्कुल भी नहीं।' असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को भी सिंह ने भारत के सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में वैधानिक, पारदर्शी और बिना भेदभाव के उठाया गया कदम बताया। पाकिस्तान का बिना नाम लिए उन्होंने कहा कि एक देश जो झूठ की फैक्ट्री चलाता है और झूठ की ऐसी कहानी वैश्विक आतंकवाद के केंद्र से आती है जहां आतंक को आश्रय दिया जाता है। उन्होंने आगे कहा- यह देश वैकल्पिक कूटनीति के तौर पर सीमापार से आतंकियों को भेजता है। सिंह ने कहा कि जो लोग क्षेत्र में किसी भी रूप में आतंकवाद को बढ़ावा देने व वित्तीय तौर पर इसका समर्थन करते हैं, वास्तव में वही मानवाधिकारों के सबसे बड़े हननकर्ता हैं। हमारा संविधान किसी भी व्यक्ति से भेदभाव किए बिना सभी नागरिकों को बराबर सम्मान देता है। हमारे लिए हमारा संविधान सर्वोपरि है। यह न्याय, स्वतंत्रता और समानता की सुरक्षा करता है। पंथनिरपेक्ष राजनीति में हमारा विश्वास बेजोड़ है। हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका इन मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं की संरक्षक है। हमारी स्वतंत्र मीडिया, जीवंत नागरिक समाज और निष्पक्ष संस्थाएं समाज के सभी वर्गों के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए एक प्रभावी ढांचा प्रदान करती हैं।


इस तरह के आक्रामक और तीखे प्रत्युत्तर के बाद परिषद का वातावरण बदल गया। भारत ने केवल यही तक अपने को सीमित नहीं रखा। वहां गिलगित बाल्तिस्तान के दो प्रतिनिधियों ने अपनी बातें रखीं। एक ने कहा कि हम तो भारत के भाग हैं, पाकिस्तान ने जबरन हम पर कब्जा किया है। दूसरे ने कहा कि पाकिस्तान कहता है कि जम्मू कश्मीर विवादित है। यह कैसे विवादित है? उनका इशारा था कि जब राजा ने भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया तो यह भारत का भाग हुआ। इसके साथ बलूचों ने बाहर प्रदर्शन किया, मीडिया के सामने पाकिस्तान को नंगा किया, सदस्य देशों के प्रतिनिधियों के समक्ष अपनी बात रखी। ऐसा ही सिंध एवं पख्तून के प्रतिनिधि ने किया। सच कहा जाए तो भारत के लिए यह मंच पाकिस्तान का गंदा सच दुनिया को दिखाने के लिए एक बड़ा मौका साबित हुआ।


यूएनएचआरसी में भारत की ओर से पेश किए गए दस्तावेज में कहा गया कि पाकिस्तान में 1987 से 2017 के बीच 1500 से अधिक लोगों को ईशनिंदा के आरोप में प्रताड़ित किया गया। इनमें से 730 मुस्लिम, 501 अहमदी, 205 ईसाई और 26 हिंदू थे। दुनिया को बताया गया कि पाकिस्तान में कानूनों के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है, उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है। लड़कियों को उठाकर जबरन धर्म परिवर्तन, जबरन निकाह, धर्मस्थलों को तोड़ने के पूरे विवरण दिए गए।


पाकिस्तान को प्रत्युत्तर में इतने बड़े घेरेबंदी की उम्मीद नहीं थी। कुरैशी भारत की रणनीति से इतने परेशान हो गए कि उन्होंने भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर कह दिया। परेशानी स्वाभाविक थी। इस तरह की मार की उम्मीद उन्हें नहीं थी। मानवाधिकार परिषद के 47 देश सदस्य हैं। इनमें भारत, पाकिस्तान के साथ चीन भी शामिल है। पाकिस्तान को अपने पक्ष में प्रस्ताव पारित कराने के लिए आधा से ज्यादा सदस्यों का समर्थन चाहिए। भारत ने अपनी सघन कूटनीति से देशों का मन बदल दिया।