इंसानी भाषा समझने वाली चिम्पैंजी सारा की कहानी 


यह कहानी दुनिया की सबसे चतुर मानी जाने वाली चिम्पैंजी सारा की है। जुलाई अंत में अमेरिका में उसकी मौत हो गई है। जानवर क्या सोचते हैं और वे इंसानी बातों पर कैसे रिएक्ट करते हैं, सारा की मदद से इस पर काफी शोध हुआ है। 1959 में जन्मी सारा बेहद कम उम्र की थी, जब उसे अमेरिका रिसर्च के लिए लाया गया था। शुरुआत के दिनों में उसे पेनसिल्वेनिया में डेविड प्रीमैक और उनकी पत्नी एन प्रीमैक की सायकोलॉजी लेबोरेट्री में ट्रेनिंग के लिए रखा गया था।
सारा दुनिया की उन चुनिंदा चिम्पैंजियों में थी जिसे सबसे पहले इंसानी भाषा बोलने और समझने की ट्रेनिंग दी गई। सारा ने इसे बेहद तेजी से सीखा था। वो प्लास्टिक मैगनेट के टोकन की मदद से बात करती थी। टोकन अलग-अलग आकार व रंग के होते थे और इनका इस्तेमाल सारा शब्दों की तरह करती थी। वो आसानी से रंगों, आकारों और इंसानी जुबान को समझ जाती थी।
जैसे वो अपनी केयरटेकर को टोकन जमाकर ये बताती थी कि 'मेरी सारा को सेब दो' (मेरी गिव सार एप्पल)। जब केयरटेकर इस बॉक्स को पलटकर 'सारा गिव मेरी एप्पल' करती थी तो वह नाराज हो जाती थी। यही नहीं उसे अलग-अलग तरह के वीडियो दिखाए जाते थे, वो उन्हें समझती थी और अधिकांश समय सही विकल्प चुनती थी। जैसे एक बार वीडियो में उसे पिंजरे में बंद एक व्यक्ति को दिखाया गया। व्यक्ति बाहर पड़ा केला लेना चाह रहा था।
इसके बाद सारा को दो और फोटो दिखाए गए, जिसमें एक में केला पाने का सही तरीका और एक में गलत तरीका था। सारा ने सही तरीका चुना। इसी तरह जब सारा और बड़ी हुई तो उसने एबी नाम के डायबिटीज से पीड़ित चिम्पैंजी की काफी मदद की। वो उसकी दवा का समय भी याद करवा देती थी। सारा के ऊपर हुए रिसर्च पर 'द माइंड ऑफ एन एप' नामक किताब भी लिखी जा चुकी है। अपने अंतिम दिनों में सारा लूसियाना के सेंटर चिंप हेवन में रहती थी